एक आवश्यक सूचना

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Wednesday, March 13, 2013

संकट मोचन- भाग दो


"बंदरबाँट चालू था मिया, उस दिन भगवान के यहाँ| स्साला सब इक से इक हरामी लौडे मंडली बना के बैठे हुए थे| भगवान भी अपनी किस्मत को कोस रहे थे| कौनसा नामुराद दिन था की विष्णु की बात सुन ली और यह भगवान का पद स्वीकार कर डाला|" बाबा ने धुआँ छोड़ते हुए फरमाया|

हमने कहा, "तुम्हे चॅड गई है| यह क्या बक रहे हो|"

"अरे सच बोल रहे हे हम| हम भी थे उस दिन वहाँ आखों से देख के आए यह सब|"
"अच्छा तो आगे क्या हुआ|"
"स्साला इक इक हरामी को दो दो मिली| कम हरामी हो तो इक मिली| और शरीफो के लिए बची ही नही|"
"अरे किस बारे में बात कर रहे हो| भगवान के यहाँ भी गुमटी थी क्या?" हमने हैरत से पूछा|
"चूतिए हो तुम, अरे लड़कियाँ|"
"ओह तो मामला लड़कीबाजी का है? हम तो सोच रहे थे की तुम दुनिया में नल्लो के बादशाह बनने के लिए ही आए हो|"
"हमे तो कोई मतलब था नही इस लौंडियबाजी से| या यह कहो की हमारे तो बस का नही है यह रोग, जीवन भर भी किसी को समझाए की हम प्यार करते हें तुमसे, तो भी मज़ाक में ही लेगा कोई भी| बड़े बक्चोदो की ज़िंदगी में यह सब सुख कहाँ होते हें बे|"
"तो मामला क्या है बाबा भाई| प्रकाश डालो|"
"स्साला, खुदका दुख तो सह लेते हें हम पर २ हफ्ते पहले वो पड़ोसी लौडे ने स्साला हान्थ काट लिया बे| इन दोस्तों ने जीना हराम कर दिया है| लौंडिया ना हुई जीवन ही हो गया| उसको समझाया भी था की ऐसे चूतियापंती का कोई मतलब नही है| इश्क़ का क्या है, माना लड़किया अब कम बची है भारत में, पर फिर भी मिल ही जाती है| बोल रहे थे ना, स्साले सारे रंडीबाज़ लौडे २-३ चलाते हें, और भोले भाले मासूम हान्थ काटते फिरते हे|" यह कहकर बाबा मौन हो गए|

हमे भी कुछ समझ ना आया, की भाई अब कहे तो क्या| सच तो यह था की हमें तो झाँट फरक नही पड़ा| यह स्साले दुनिया ऐसे कमज़ोरो के लिए बनी ही कहाँ है| कौन पूछता था, मरने के दो दिन बाद| अजी माँ- बाप भाई बहन भी बोलते हें, की मुफ़त का ख़ाता था, अच्छा मर गया| अगर ऐसी बातों से लोग जीने मरने लगे, तो दुनिया में बचेगा ही नही कोई| मरने वाले मरते रह जाते हें| और दुनिया उनकी कब्र पर मूतती है| सत्य का आभास नही है इन्हे|

हमने नशे में भटकी बाबा की निगाहो को गौर से देखा| दुख तो बहुत हुआ यह सोचके की इनका चूतिया काटे बगैर दुनिया को नींद कहाँ आएगी| "आएगा इनका दिन भी, यह भी काटेगे हान्थ इश्क़ में, बहुत भावनाओ में बहते हें यह भी"|

हमने गांजे का आख़िरी काश खीचा, और बाबा की तरफ देखके बोला, "चलो मालिक, आज की दारू हम पिलाते हें| सारे संकटो को एक ही चीज़ हर सकते है|"

_____________________________________  इति______________________________________

Saturday, March 9, 2013

संकट मोचन- भाग एक



निराश थे काफ़ी उस दिन, हमारे बाबाजी, बड़ी उम्मिदो से एक ब्लॉग का निर्माण करके उसपे आने जाने वाले हर व्यक्ति पर निगाह लगाए बैठे थे| अजी ये नित्य नयी टेक्नालजी ले के आ जाते हें यह स्याले, इक नज़र में ही पता पड़ जाता है, कोन्ने देखा किधर से देखा, कितनी देर आँखे सेक के गया नामाकूल| अस्थि-मज्ज़र इक, कोई तो कुछ बोलेगा, कोई तो एकाध टिप्पणी करके प्रयास की सराहना करेगा, अरे माना गूड़ व्यक्ति हे हम, पर भावनाए तो भाई हमारे अंदर भी हें| प्रशंसा के पुल न सही, आपकी तो गालियाँ भी हमे मीठी लगती| कितते आए कितते गए, इक भी स्याला उम्मीद पे खरा ना उतरा, खुदका भी समय नष्ट, बाबाजी का भी(भूल गए थे की ब्लॉग बनाया ही इसीलिए था)|

खैर, हमसे बाबाजी की यह हालत देखी ना गई| हमने भी सिगरेट का सुनहरा, रजत और यहाँ तक की कान्स्य कश भी उन्हे दे डाला| अब भाई साहब हम भी इंसान ही हें|दूसरे का दर्द देखके हम भी दर्द में होने का ढोंग तो रच ही लेते हें|

लेकिन अचरज तो साहब इस बात का था इक पिद्दी से ब्लॉग को लेके इतना दर्द, अरे माना आपका सपना है, इन कलयुगी जानवरो को इंसानियत का पाठ पढ़ना| पर महाशय, जो आपने लिखा था वो भी तो हिन्दी साहित्य की बदनामी के सिवा कुछ नही था| इतनी निराशा तो भगवान राम को सीता हरण के बाद भी नही हुई थी, मन ही मन तो वो भी खुश ही थे, चलो बला टली| अब हमसे और ना देखा गया, हमने भी शर्त रख दी, की भाई अब तो अगली सिगरेट तभी जलेगी जब आप दिल के राज़ खोलोगे|

किंकर्तव्यविमूढ़ होकर बाबाजी ने पहले हमे देखा, उसके बाद उस गुमटी वाले को| हमे तो लगा की आज बाबाजी की उदासीन शकल से यह गुमटिवाला कहीं इन्हे सिगरेट दे ना दे, पर बाबाजी ने उसके भाव हमसे पहले ही पढ़ लिए और इससे पहले गुमटी वाला पुरानी उधारी माँगता, बाबाजी हमसे बोले ले लो ५ सिगरेट आज ज़रूरत पड़ेगी| हमने खीसे में डला सड़ा हुआ बीस का नोट निकाला, और गर्व से गुमटीवाले से ५ गोल्डफ्लेक के माँग कर दी|

रूम को चौतरफ़ा बंद करके, धुएँ में सारोबोर होने को हम तियार हो गए| बाबाजी भी व्यावहारिक थे, उन्होने तखत के कोने में दबी छ्होटी सी चिलम की पूडिया और निकाल ली| तंबाखू और माल का मिश्रण बनाके हमे पेश किया और इक खुद जला के बैठ गए|

बाबाजी ने अपनी दुखभरी कहानी शुरू की, बोले बाबू तुम जानते नही हो क्या हुआ है हमारे साथ| हमारे जिगर में कौतूहल मच गया, जानने की अपार इक्चा हो गए, नया गॉसिप सुनने की आस में कुत्ते की तरह लार टपकने लगी हमारी, धुआँ भी बहुत भर गया था कमरे में, दिल कुलाचे मारने लगा| बाबाजी ने भी अपना मुह खोला, और अमृत की तलाश में हम ज़हर पीने को भी तैय्यार हो गए|

Tuesday, March 5, 2013

बाबाजी और ब्लॉगिंग




बाबाजी शुरू से ऐसे नही थे, बचपन में तो इकड़म टिप-टॉप रहने वाले गोरे चित्ते, सुंदर और सुशील बच्चे थे. ना शरारत करते थे ना मा को कभी परेशान, हमेशा बस अपने हे धुन में रहते. शायद डरते थे बाबाजी किसी से, पिताजी ने बहुत कंट्रोल में रखा था. वो तो अगर वो कक्षा 9 में लटके ना होते बाबाजी तो आज तक समझ ना पाते की यह बकर करना ही उनका स्वाभाविक और इक़मात्र गुड है. खैर उस बारे में कभी खुल के चर्चा करेंगे, आज तो मौका बस बाबाजी की छुपी प्रतिभाओ को दर्शाने का है.
वैसे तब उन्हे बाबाजी के नाम से भी लोग नही जानते थे, यह तो स्याले हॉस्टिल के बुर बक बच्चे थे, जिनके साथ बक चोदि करते करते और अपना ग्यान बताते बताते इन करम जले कल के लौंदो ने सृिकांत मिश्रा का नाम ही बाबाजी रख दिया.

दिमाग़ तेज़ था उनका, बहुत तेज़, बस कमी इतने रह गए की कही और लगता हे नही था, आप बस 10 लोगो के बीच में बैठा दीजिए उन्हे और फिर ग्यान की बातें करा लीजिए. मा कसम, झंडे गाड़ देंगे बाबाजी. बाबाजी की लाइफ का सीधा फंडा था, टाइम आज तक किसी का नही हुआ, स्याले ऐसे बेवफा चीज़ का क्या करना है. जैसे ही टाइम मिले ना, उसका कुछ मत करो, बस तुरंत वेस्ट कर दो. ना पीछे देखो ना आगे, बस कंबक्खत को वेस्ट कर दो. स्याला ना रहेगा बाँस और ना बजेगे बासुरी.

यह बात उस दिन की है जब बाबाजी ने यह निर्णय लिया की अब भाई बहुत हो गया, बहुत बक चोदि  फैला ली हॉस्टिल के गलियारो में, अबा आगे बढ़ने के ज़रूरत है. बहुत टाइम वेस्ट किया खुदका, अब ज़माने का करना है. बाबाजी ने अपना फर्स्ट एअर याद किया, जब बक चोदि के महाग्यता और बाबाजी के परम सीनियर, मामा सिर ने उनके मूह पर धुआ छ्चोड़ते हुए कहा था.

मामा सर : “ छ्होटे, तुझमे मुझे अपना भूत दिखता है, तू स्याला चीज़ शानदार है.”
बाबा: “क्या सिर, ऐसा बोलके तो आपने मेरे आँखो में आँसू ला दिए. देखना गुरुपूर्णिमा को नारियल चढ़ा उँगा आपको.”
मामा सर: “आबे कैसे बात करता है तू, आज मुझे लगता है की जीवन सफल हो गया मेरा, बहन चोद कब से ढूंड रहा था में पापी तेरे जैसा, साला नंगा नाच कर देगा तू दुनिया में, दुनिया हिला देगा तू मेरे लाल. बस इक सही डाइरेक्षन के ज़रूरत है तुझे.”
बाबा: “सर, सही डाइरेक्षन, गुरुदेव वो सही डाइरेक्षन क्या है. क्या करू में अपने प्रसिद्धि बढ़ने के लिए.”
मामा सर: “भोसड़ी के, सही डाइरेक्षन अगर पता होता मुझे तो क्या आज में यहाँ होता, ढूंड वो डाइरेक्षन. वही तुझे बुलंदियों तक ले जाएगा और याद रख, “तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा.””
ऐसा बोलते हुए, मामा की आँखे भर आए, और उसी दिन हमारे बाबा भाई ने निर्णय लिया की, मामा का और खुदका सपना पूरा करना ही है बाबा को.

उस दिन के ठीक 3 साल बाद, जब बाबाजी ने बिहारी को इंटरनेट पर फ़ेसबुक ना चलते देखा, तो बाबा भाई से रहा नही गया, और उनके मूह से वो शब्द निकले जिसने उनके संसार को और दुनिया के भविष्य को बदल के रख दिया, वो शब्द थे “ तुम स्याला फ़ेसबुक पे नही हो, आबे यह क्या बक चोदि  फैला रहे हो आजकल.” और फिर क्या था बिहारे ने बाबा को ब्लॉग्गिंग का पूरा ग्यान दिया.

ग्यान सुनते हे बाबा के आँखो के सामने अपने गुरु मामा का गुटका ख़ाता चेहरा नज़र आया, और उन्होने दिव्य दर्शन में बाबा को बोला,”आवे ईएई खो ओम उूवे एह.”. बाबा को कुछ नही समझा और बाबा झल्ला के बोले “कितनी बार बोला सर तुमको गुटका थूक के बोला करो, बहन चोद नही समझ पाते हम”. मामा ने फिर गुटका थूक के बोला,”यही तो हम बोले थे. “यह जो सपना है तेरा, तुझको अब पाना है””. फिर क्या था,बाबा ने आशीर्वाद लिया मामा का और आज उन्होने अपने नयी पारी की शुरुआत की.